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बंदा सिंह बहादुर जी की जिंदगी का आखरी दिन जब मुगलों ने सारी क्रूरता की हदें पार करते हुए उनके सामने तेज धार वाली तलवार से उनके बेटे को काट दिया और उसका तड़पता हुआ कलेजा निकाल कर सिंह जी के मुंह में डाल दिया |By वनिता कासनियां पंजाब पृष्ठभूमि----8 महीने मुगलों ने डाले रखा घेरा-दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी की 'बाबा बंदा सिंह बहादुर के अंतिम दिन और दो सिख शहीद बच्चे' पुस्तक में प्रोफेसर हरबंस सिंह लिखते हैं कि बाबा बंदा सिंह बहादुर और उनके साथियों की अंतिम दिनों की कहानी बेहद दर्दनाक है.मार्च, 1715 में बंदा सिंह बहादुर[1] अपने सिपाहियों के साथ गुरदास नंगल[2] की गढ़ी में घिर गए. मुगलों ने गढ़ी में जाने वाले सभी रास्तों की नाकाबंदी कर दी गई. किले तक पहुंचने वाले भोजन और पीने के पानी पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई.मुगल सेना के लगभग 30 हजार सिपाहियों ने किले को चारों तरफ से घेर लिया, लेकिन इसके बावजूद उन्हें यह डर रह-रहकर सता रहा था कि कहीं बंदा सिंह बहादुर इस घेरे को तोड़कर निकल न जाए.कई महीनों तक बंदा सिंह बहादुर[3] और उसके साथी अपना पेट भरने के लिए गढ़ी में पैदा हुई घास और पेड़ों के पत्ते खाते रहे. इसके बाद पशुओं की हड्डियों को पीसकर आटे के स्थान पर प्रयोग किया गया.सब कुछ खत्म होने के बाद नौबत यहां तक आ गई कि सभी योद्धाओं को अपनी जांघों का मांस काटकर और भूनकर खाना पड़ा.इन सारी मुसीबतों और परेशानियों के होते हुए भी बंदा बहादुर के वफादार सिपाहियों ने 8 महीनों तक मुगल फौजों का डटकर मुकाबला किया.भूखे भेड़ियों की तरह टूट पड़े मुगलजब बचने का कोई रास्ता नहीं बचा तो शरीरिक रूप से कमजोर हो चुके इन योद्धाओं ने गढ़ी के दरवाजे खोल दिए.शाही फौज भूखे भेड़ियों की तरह बीमार और भूख के शिकार सिखों पर टूट पड़ी और लगभग 300 सिखों का नंगी तलवारों से कत्ल कर दिया गया.17 दिसंबर, 1715 को बंदा सिंह बहादुर समेत 740 सिखों को लोहे की जंजीरों में जकड़कर कैद कर लिया गया.कत्ल किए गए योद्धाओं के सिरों को काटकर और पेट को चीरकर उनमें भूसा भर दिया गया. उनके सिरों को ऊंची बांस पर टांग दिया गया.कैद किए गए सिखों को दिल्ली ले जाया जाना था, इससे पहले इन्हें जंजीरों में जकड़कर बेहद घटिया वस्त्र पहनाए गए और जानवरों की पीठ पर बांधकर लाहौर के बाजारों में उनकी नुमाइश की गई.इसके बाद इन कैद किए गए योद्धाओं को दिल्ली भेजने का प्रबंध किया गया. लाहौर के सूबेदार ने स्वयं इन कैदियों को दिल्ली जाकर मुगल शासक को सौंपने की आज्ञा मांगी.बंदा सिंह को पिंजरे में बंद कर दिल्ली लाया गयाश्री गुरु तेग बहादुर खालसा कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हरबंस सिंह दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी के प्रकाशन में छपी पुस्तक में लिखते हैं कि इन सिखों को जुलूस निकालते हुए दिल्ली में लाया गया था. सबसे आगे सिखों के सिर भूसे से भरकर नेजों और बांसों पर टंगे हुए थे.बंदा सिंह बहादुर को जंजीरों में जकड़कर पिंजरे में बंद करके हाथी पर लाद दिया गया[4] था. उनका मजाक बनाने के लिए उन्हें सुनहरी पगड़ी और जरी से सजी फूलों वाली पोशाक पहनाई गई.बंदा सिंह बहादुर के पीछे उनके अन्य साथियों को दो-दो की गिनती में एक साथ जंजीरों में जकड़कर ऊंटों के ऊपर लादा हुआ था. कई सिखों को भेड़ों के चमड़े के कपड़े पहनाए गए थे.मौत इन योद्धाओं के सिर पर नाच रही थी, बावजूद इसके उनके चेहरे पर इसकी सिकन तक न थी. वह आनंद मगन होकर वाहेगुरु की वाणी गाते चले जा रहे थे.... और जारी कर दिया मौत का फरमानबंदा सिंह बहादुर, भाई बाज सिंह, भाई फतेह सिंह, भाई ताज सिंह और अन्य 23 साथियों को त्रिपोलिया जेल में कैद करने के लिए मीर आतिश इब्राहिम-ओ-दीन-खां के सुपुर्द कर दिया गया.शेष सिखों को कत्ल करने के लिए दिल्ली के कोतवाल सरबराह खां के हवाले कर दिया गया.इन कैदियों को कत्ल करने का काम 5 मार्च 1716 को शुरू हुआ. कत्ल करने के लिए कोतवाली के चबूतरे पर लाने से पहले प्रत्येक सिख से पूछा जाता कि अगर वह मुस्लिम बन जाता है, तो उसे छोड़ दिया जाएगा और साथ ही ईनाम भी दिया जाएगा.लेकिन किसी ने भी अपने धर्म को नहीं छोड़ा और हंसते-हंसते शहीद हो गए.बंदा सिंह बहादुर के साथी तो कत्ल कर दिए गए लेकिन उनकी मौत को कुछ समय के लिए टाल दिया गया, ताकि उनके गुप्त खजाने का पता लगाया जा सके.अंत में 9 जून 1716 को इनकी भी मौत का हुक्म जारी कर दिया गया.कत्ल करने से पहले बंदा सिंह बहादुर के आगे भी दो शर्त रखी गईं 'मौत या इस्लाम'?बंदा तो बंदा ठहरे उन्होंने खुशी से मौत वाला रास्ता चुन लियाबेटे का कलेजा मुंह में डाल दियामौत से पहले बंदा सिंह को सुनहरी कपड़े पहनाकर कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह पर लाया गया और दरगाह के चारों ओर घुमाया गया.इसके बाद बंदा सिंह बहादुर को एक स्थान पर बैठा दिया गया और उनके चार वर्षीय बेटे अजय सिंह को उनकी गोद में रख दिया.बंदा सिंह से कहा गया कि वह अपने हाथों से अपने बच्चे का कत्ल कर दे.जब बंदा सिंह ने यह करने से मना कर दिया तो जल्लाद ने स्वयं तेज धार वाली तलवार से अजय सिंह के टुकड़े कर दिए और उसका तड़फता कलेजा[5] निकालकर बंदा सिंह के मुंह में ठूंस दिया.अपने बच्चे का कत्ल भी उन्हें अपने फैसले से डिगा नहीं पाया और उन्होंने मौत को गले लगाना बेहतर समझा.इसके बाद जल्लादों ने खंजर मार कर बंदा सिंह की आंख निकाल दी और बायां पैर काट दिया. गर्म चिमटों से उनके शरीर का मांस नौचा गया.हड्डियों से चिपका मांस कितनी देर टिकता, वह सब खींच लिया गया और जब मांच के नीचे से सफेद हड्डियां दिखाई देने लगीं, तो उनके शरीर के प्रत्येक अंग को काटकर अलग-अलग कर दिया गया.बंदा सिंह बहादुर ने यह अत्याचार बड़ी दिलेरी से सहा.इसके बाद उनके शेष बचे साथियों को भी इसी तरह से मार दिया गया.इस तरह से बाबा बंदा सिंह ने बड़ी बहादुरी के साथ मौत को गले लगाया, लेकिन मुगलों के जुल्म और यातनाएं उन्हें डिगा न सकीं.रविंद्र नाथ ठाकुर ने उलिखउनकी बेदर्दी से हत्या पर कुछ ऐसा लिखा थाদেখিতে দেখিতে গুরুর মন্ত্রেজাগিয়া উঠেছে শিখনির্মম, নির্ভীক(The chants of the Guru have led to the Sikhs rising in protestThey are fearless ...)वनिता कासनियां पंजाब:शायद इसीलिए बंदा सिंह जी की बहादुरी जो इतिहास किताबों से गायब कर दिया गया है ताकि हमें यह बताया जा सके कि मुगल कितने महान थे|फुटनोट:

बंदा सिंह बहादुर जी की जिंदगी का आखरी दिन जब मुगलों ने सारी क्रूरता की हदें पार करते हुए उनके सामने तेज धार वाली तलवार से उनके बेटे को काट दिया और उसका तड़पता हुआ कलेजा निकाल कर सिंह जी के मुंह में डाल दिया| By वनिता कासनियां पंजाब पृष्ठभूमि---- 8 महीने मुगलों ने डाले रखा घेरा- दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी की 'बाबा बंदा सिंह बहादुर के अंतिम दिन और दो सिख शहीद बच्चे' पुस्तक में प्रोफेसर हरबंस सिंह लिखते हैं कि बाबा बंदा सिंह बहादुर और उनके साथियों की अंतिम दिनों की कहानी बेहद दर्दनाक है. मार्च, 1715 में बंदा सिंह बहादुर [1]  अपने सिपाहियों के साथ गुरदास नंगल [2]  की गढ़ी में घिर गए. मुगलों ने गढ़ी में जाने वाले सभी रास्तों की नाकाबंदी कर दी गई. किले तक पहुंचने वाले भोजन और पीने के पानी पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई. मुगल सेना के लगभग 30 हजार सिपाहियों ने किले को चारों तरफ से घेर लिया, लेकिन इसके बावजूद उन्हें यह डर रह-रहकर सता रहा था कि कहीं बंदा सिंह बहादुर इस घेरे को तोड़कर निकल न जाए. कई महीनों तक बंदा सिंह बहादुर [3]  और उसके साथी अपना पेट भरने के लिए गढ़ी में पै...
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हेमकुंट साहिबभारत के उत्तराखंड स्थित गुरुद्वारा वनिता कासनियां पंजाब द्वारा PDF डाउनलोड कहेमकुंट साहिब चमोली जिला, उत्तराखंड, भारत में स्थित सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। यह हिमालय में 4632 मीटर (15,192.96 फुट) की ऊँचाई पर एक बर्फ़ीली झील के किनारे सात पहाड़ों के बीच स्थित है। इन सात पहाड़ों पर निशान साहिब झूलते हैं।[1] इस तक ऋषिकेश-बद्रीनाथ साँस-रास्ता पर पड़ते गोविंदघाट से केवल पैदल चढ़ाई के द्वारा ही पहुँचा जा सकता है।हेमकुंट साहिबਹੇਮਕੁੰਟ ਸਾਹਿਬहेमकुंटतीर्थ स्थलA stone building is surrounded by partially frozen ponds. Pilgrims can be seen on the pathsगुरुद्वारा हेमकुंट साहिबदेश भारतराज्यउत्तराखण्डजिलाचमोली जिलाऊँचाई4632.96 मी (15,200.00 फीट)भाषाएँ • आधिकारिकहिन्दीसमय मण्डलLts (यूटीसी+5:30)PIN249401वेबसाइटwww.hemkunt.inयहाँ गुरुद्वारा श्री हेमकुंट साहिब सुशोभित है। इस स्थान का उल्लेख गुरु गोबिंद सिंह द्वारा रचित दसम ग्रंथ में आता है। इस कारण यह उन लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है जो दसम ग्रंथ में विश्वास रखते हैं।निरुक्तिसंपादित करेंहेमकुंट एक संस्कृत नाम है जो हेम ("बर्फ़") और कुंड ("कटोरा") से आया है। दसम ग्रंथ के मुताबिक़ यह वह जगह है जहाँ पाँडु राजो ने योग्य सुधारा था।मान्यतासंपादित करेंहेमकुंट साहिब जाते तीर्थयात्रीयहाँ पहले एक मंदिर था जिसका निर्माण भगवान राम के अनुज लक्ष्मण ने करवाया था। सिखों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह ने यहाँ पूजा अर्चना की थी। बाद में इसे गुरूद्वारा घोषित कर दिया गया। इस दर्शनीय तीर्थ में चारों ओर से बर्फ़ की ऊँची चोटियों का प्रतिबिम्ब विशालकाय झील में अत्यन्त मनोरम एवं रोमांच से परिपूर्ण लगता है। इसी झील में हाथी पर्वत और सप्त ऋषि पर्वत श्रृंखलाओं से पानी आता है। एक छोटी जलधारा इस झील से निकलती है जिसे हिमगंगा कहते हैं। झील के किनारे स्थित लक्ष्मण मंदिर भी अत्यन्त दर्शनीय है। अत्याधिक ऊँचाई पर होने के कारण वर्ष में लगभग ७ महीने यहाँ झील बर्फ में जम जाती है। फूलों की घाटी यहाँ का निकटतम पर्यटन स्थल है।

हेमकुंट साहिब भारत के उत्तराखंड स्थित गुरुद्वारा वनिता कासनियां पंजाब द्वारा PDF डाउनलोड क हेमकुंट साहिब   चमोली जिला ,  उत्तराखंड ,  भारत  में स्थित  सिखों  का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। यह  हिमालय  में 4632 मीटर (15,192.96 फुट) की ऊँचाई पर एक बर्फ़ीली झील के किनारे सात पहाड़ों के बीच स्थित है। इन सात पहाड़ों पर  निशान साहिब  झूलते हैं। [1]  इस तक  ऋषिकेश- बद्रीनाथ  साँस-रास्ता पर पड़ते  गोविंदघाट  से केवल पैदल चढ़ाई के द्वारा ही पहुँचा जा सकता है। हेमकुंट साहिब ਹੇਮਕੁੰਟ ਸਾਹਿਬ हेमकुंट तीर्थ स्थल गुरुद्वारा हेमकुंट साहिब देश   भारत राज्य उत्तराखण्ड जिला चमोली जिला ऊँचाई 4632.96 मी (15,200.00 फीट) भाषाएँ  • आधिकारिक हिन्दी समय मण्डल Lts ( यूटीसी+5:30 ) PIN 249401 वेबसाइट www .hemkunt .in यहाँ गुरुद्वारा श्री हेमकुंट साहिब सुशोभित है। इस स्थान का उल्लेख  गुरु गोबिंद सिंह  द्वारा रचित  दसम ग्रंथ  में आता है। इस कारण यह उन लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है जो दसम ग्रंथ में ...

AMRIT VELE DA HUKAMNAMA SRI DARBAR SAHIB SRI AMRITSAR, ANG-660, 19-SEPT.-2021ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੧ ਚਉਪਦੇੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ਜੀਉ ਡਰਤੁ ਹੈ ਆਪਣਾ ਕੈ ਸਿਉ ਕਰੀ ਪੁਕਾਰ ॥ ਦੂਖ ਵਿਸਾਰਣੁ ਸੇਵਿਆ ਸਦਾ ਸਦਾ ਦਾਤਾਰੁ ॥੧॥ ਸਾਹਿਬੁ ਮੇਰਾ ਨੀਤ ਨਵਾ ਸਦਾ ਸਦਾ ਦਾਤਾਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ਅਨਦਿਨੁ ਸਾਹਿਬ ਸੇਵੀਐ ਅੰਤਿ ਛਡਾਏ ਸੋਇ ॥ ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਮੇਰੀ ਕਾਮਣੀ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰਾ ਹੋਇ ॥੨॥ ਦਇਆਲ ਤੇਰੈ ਨਾਮਿ ਤਰਾ ॥ ਸਦ ਕੁਰਬਾਣੈ ਜਾਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ਸਰਬੰ ਸਾਚਾ ਏਕੁ ਹੈ ਦੂਜਾ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ॥ ਤਾ ਕੀ ਸੇਵਾ ਸੋ ਕਰੇ ਜਾ ਕਉ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ॥੩॥ ਤੁਧੁ ਬਾਝੁ ਪਿਆਰੇ ਕੇਵ ਰਹਾ ॥ ਸਾ ਵਡਿਆਈ ਦੇਹਿ ਜਿਤੁ ਨਾਮਿ ਤੇਰੇ ਲਾਗਿ ਰਹਾਂ ॥ ਦੂਜਾ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ਜਿਸੁ ਆਗੈ ਪਿਆਰੇ ਜਾਇ ਕਹਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ਸੇਵੀ ਸਾਹਿਬ ਆਪਣਾ ਅਵਰੁ ਨ ਜਾਚੰਉ ਕੋਇ ॥ ਨਾਨਕੁ ਤਾ ਕਾ ਦਾਸੁ ਹੈ ਬਿੰਦ ਬਿੰਦ ਚੁਖ ਚੁਖ ਹੋਇ ॥੪॥ ਸਾਹਿਬ ਤੇਰੇ ਨਾਮ ਵਿਟਹੁ ਬਿੰਦ ਬਿੰਦ ਚੁਖ ਚੁਖ ਹੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥੪॥੧॥धनासरी महला १ घरु १ चउपदे ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं(ग) गुर प्रसादि ॥जीउ डरतु है आपणा कै सिउ करी पुकार ॥ दूख विसारणु सेविआ सदा सदा दातारु ॥१॥ साहिबु मेरा नीत नवा सदा सदा दातारु ॥१॥ रहाउ ॥ अनदिनु साहिबु सेवीऐ अंति छडाए सोए ॥ सुणि सुणि मेरी कामणी पारि उतारा होए ॥२॥ दइआल तेरै नामि तरा ॥ सद कुरबाणै जाउ ॥१॥ रहाउ ॥ सरबं साचा एकु है दूजा नाही कोए ॥ ता की सेवा सो करे जा कउ नदरि करे ॥३॥ तुधु बाझु पिआरे केव रहा ॥ सा वडिआई देहि जितु नामि तेरे लागि रहां ॥ दूजा नाही कोए जिसु आगै पिआरे जाइ कहा ॥१॥ रहाउ ॥ सेवी साहिबु आपणा अवरु न जाचंउ कोए ॥ नानकु ता का दासु है बिंद बिंद चुख चुख होए ॥४॥ साहिब तेरे नाम विटहु बिंद बिंद चुख चुख होए ॥१॥ रहाउ ॥४॥१॥Dhhanaasaree Mahalaa 1 Ghar 1 Choupade One Universal Creator God. Truth Is The Name. Creative Being Personified. No Fear. No Hatred. Image Of The Undying. Beyond Birth. Self-Existent. By Guru's Grace:My soul is afraid; to whom should I complain ? I serve Him, who makes me forget my pains; He is the Giver, forever and ever. ||1|| My Lord and Master is forever new; He is the Giver, forever and ever. ||1|| Pause || Night and day, I serve my Lord and Master; He shall save me in the end. Hearing and listening, O my dear sister, I have crossed over. ||2|| O Merciful Lord, Your Name carries me across. I am forever a sacrifice to You. ||1|| Pause || In all the world, there is only the One True Lord; there is no other at all. He alone serves the Lord, upon whom the Lord casts His Glance of Grace. ||3|| Without You, O Beloved, how could I even live ? Bless me with such greatness, that I may remain attached to Your Name. There is no other, O Beloved, to whom I can go and speak. ||1|| Pause || I serve my Lord and Master; I ask for no other. Nanak Ji is His Daas; moment by moment, bit by bit, he is a sacrifice to Him. ||4|| O Lord Master, I am a sacrifice to Your Name, moment by moment, bit by bit. ||1|| Pause ||4||1||ਪਦਅਰਥ: ਜੀਉ = ਜਿੰਦ। ਕੈ ਸਿਉ = ਕਿਸ ਪਾਸ? ਕਰੀ = ਮੈਂ ਕਰਾਂ। ਦੂਖ ਵਿਸਾਰਣੁ = ਦੁੱਖ ਦੂਰ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਪ੍ਰਭੂ। ਸੇਵਿਆ = ਮੈਂ ਸਿਮਰਿਆ ਹੈ।੧। ਨੀਤ = ਨਿੱਤ। ਨਵਾ = (ਭਾਵ, ਦਾਤਾਂ ਦੇ ਦੇ ਕੇ ਅੱਕਣ ਵਾਲਾ ਨਹੀਂ) । ਦਾਤਾਰੁ = ਦਾਤਾਂ ਦੇਣ ਵਾਲਾ।੧।ਰਹਾਉ। ਅਨਦਿਨੁ = ਹਰ ਰੋਜ਼, ਸਦਾ। ਅੰਤਿ = ਆਖ਼ਰ ਨੂੰ। ਮੇਰੀ ਕਾਮਣੀ = ਹੇ ਮੇਰੀ ਜਿੰਦੇ!।੨। ਦਇਆਲ = ਹੇ ਦਇਆ ਦੇ ਘਰ! ਨਾਮਿ = ਨਾਮ ਦੀ ਰਾਹੀਂ। ਤਰਾ = ਤਰ ਸਕਦਾ ਹਾਂ, ਪਾਰ ਲੰਘ ਸਕਦਾ ਹਾਂ।੧।ਰਹਾਉ। ਸਰਬੰ = ਹਰ ਥਾਂ। ਸਾਚਾ = ਸਦਾ ਕਾਇਮ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ। ਕਉ = ਨੂੰ। ਨਦਰਿ = ਮੇਹਰ ਦੀ ਨਜ਼ਰ। ਕਰੇਇ = ਕਰਦਾ ਹੈ।੩। ਕੇਵ ਰਹਾ = ਕਿਵੇਂ ਰਹਿ ਸਕਦਾ ਹਾਂ? ਮੈਂ ਵਿਆਕੁਲ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹਾਂ। ਜਿਤੁ = ਜਿਸ ਦੀ ਰਾਹੀਂ। ਜਾਇ = ਜਾ ਕੇ।੧।ਰਹਾਉ। ਸੇਵੀ = ਮੈਂ ਸੇਂਵਦਾ ਹਾਂ। ਜਾਚੰਉ = ਮੈਂ ਮੰਗਦਾ ਹਾਂ। ਬਿੰਦ ਬਿੰਦ = ਖਿਨ ਖਿਨ। ਚੁਖ ਚੁਖ = ਟੋਟੇ ਟੋਟੇ, ਕੁਰਬਾਨ।੪। ਵਿਟਹੁ = ਤੋਂ। ਸਾਹਿਬ = ਹੇ ਸਾਹਿਬ!ਅਰਥ: ਰਾਗ ਧਨਾਸਰੀ, ਘਰ ੧ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਚਾਰ-ਬੰਦਾਂ ਵਾਲੀ ਬਾਣੀ।ਅਕਾਲ ਪੁਰਖ ਇੱਕ ਹੈ, ਜਿਸ ਦਾ ਨਾਮ 'ਹੋਂਦ ਵਾਲਾ' ਹੈ ਜੋ ਸ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਦਾ ਰਚਨਹਾਰ ਹੈ, ਜੋ ਸਭ ਵਿਚ ਵਿਆਪਕ ਹੈ, ਭੈ ਤੋਂ ਰਹਿਤ ਹੈ, ਵੈਰ-ਰਹਿਤ ਹੈ, ਜਿਸ ਦਾ ਸਰੂਪ ਕਾਲ ਤੋਂ ਪਰੇ ਹੈ, (ਭਾਵ, ਜਿਸ ਦਾ ਸਰੀਰ ਨਾਸ-ਰਹਿਤ ਹੈ), ਜੋ ਜੂਨਾਂ ਵਿਚ ਨਹੀ ਆਉਂਦਾ, ਜਿਸ ਦਾ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਆਪਣੇ ਆਪ ਤੋਂ ਹੋਇਆ ਹੈ ਅਤੇ ਜੋ ਸਤਿਗੁਰੂ ਦੀ ਕਿਰਪਾ ਨਾਲ ਮਿਲਦਾ ਹੈ।(ਜਗਤ ਦੁੱਖਾਂ ਦਾ ਸਮੁੰਦਰ ਹੈ, ਇਹਨਾਂ ਦੁੱਖਾਂ ਨੂੰ ਵੇਖ ਕੇ) ਮੇਰੀ ਜਿੰਦ ਕੰਬਦੀ ਹੈ (ਪਰਮਾਤਮਾ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਹੋਰ ਕੋਈ ਬਚਾਣ ਵਾਲਾ ਦਿੱਸਦਾ ਨਹੀਂ) ਜਿਸ ਦੇ ਪਾਸ ਮੈਂ ਮਿੰਨਤਾ ਕਰਾਂ। (ਸੋ, ਹੋਰ ਆਸਰੇ ਛੱਡ ਕੇ) ਮੈਂ ਦੁੱਖਾਂ ਦੇ ਨਾਸ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਭੂ ਨੂੰ ਹੀ ਸਿਮਰਦਾ ਹਾਂ, ਉਹ ਸਦਾ ਹੀ ਬਖ਼ਸ਼ਸ਼ਾਂ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਹੈ ॥੧॥ (ਫਿਰ ਉਹ) ਮੇਰਾ ਮਾਲਿਕ ਸਦਾ ਹੀ ਬਖ਼ਸ਼ਸ਼ਾਂ ਤਾਂ ਕਰਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ (ਪਰ ਉਹ ਮੇਰੇ ਨਿੱਤ ਦੇ ਤਰਲੇ ਸੁਣ ਕੇ ਕਦੇ ਅੱਕਦਾ ਨਹੀਂ, ਬਖ਼ਸ਼ਸ਼ਾਂ ਵਿਚ) ਨਿੱਤ ਇਉਂ ਹੈ ਜਿਵੇਂ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰੀ ਹੀ ਬਖ਼ਸ਼ਸ਼ ਕਰਨ ਲੱਗਾ ਹੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ਹੇ ਮੇਰੀ ਜਿੰਦੇ! ਹਰ ਰੋਜ਼ ਉਸ ਮਾਲਿਕ ਨੂੰ ਯਾਦ ਕਰਨ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ (ਦੁੱਖਾਂ ਵਿਚੋਂ) ਅਾਖ਼ਰ ਉਹੀ ਬਚਾਂਦਾ ਹੈ। ਹੇ ਜਿੰਦੇ! ਧਿਆਨ ਨਾਲ ਸੁਣ (ਉਸ ਮਾਲਿਕ ਦਾ ਆਸਰਾ ਲਿਆਂ ਹੀ ਦੁਖਾਂ ਦੇ ਸਮੁੰਦਰ ਵਿਚੋਂ) ਪਾਰ ਲੰਘ ਸਕੀਦਾ ਹੈ ॥੨॥ ਹੇ ਦਿਆਲ ਪ੍ਰਭੂ! (ਮੇਹਰ ਕਰ, ਆਪਣਾ ਨਾਮ ਦੇਹ, ਤਾ ਕਿ) ਤੇਰੇ ਨਾਮ ਦੀ ਰਾਹੀਂ ਮੈਂ (ਦੁੱਖਾਂ ਦੇ ਇਸ ਸਮੁੰਦਰ ਵਿਚੋਂ) ਪਾਰ ਲੰਘ ਸਕਾਂ। ਮੈਂ ਤੈਥੋਂ ਸਦਾ ਸਦਕੇ ਜਾਂਦਾ ਹਾਂ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ਸਦਾ ਕਾਇਮ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਪਰਮਾਤਮਾ ਹੀ ਸਭ ਥਾਈਂ ਮੌਜੂਦ ਹੈ, ਉਸ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਹੋਰ ਕੋਈ ਨਹੀਂ। ਜਿਸ ਜੀਵ ਉਤੇ ਉਹ ਮੇਹਰ ਦੀ ਨਿਗਾਹ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਉਸ ਦਾ ਸਿਮਰਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ॥੩॥ ਹੇ ਪਿਆਰੇ (ਪ੍ਰਭੂ!) ਤੇਰੀ ਯਾਦ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਮੈਂ ਵਿਆਕੁਲ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹਾਂ। ਮੈਨੂੰ ਕੋਈ ਉਹ ਵੱਡੀ ਦਾਤਿ ਦੇਹ, ਜਿਸ ਦਾ ਸਦਕਾ ਮੈਂ ਤੇਰੇ ਨਾਮ ਵਿਣ ਜੁੜਿਆ ਰਹਾਂ। ਹੇ ਪਿਆਰੇ! ਤੈਥੋਂ ਬਿਨਾ ਹੋਰ ਐਸਾ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ਹੈ, ਜਿਸ ਪਾਸ ਜਾ ਕੇ ਮੈਂ ਇਹ ਅਰਜ਼ੋਈ ਕਰ ਸਕਾਂ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ (ਦੁਖਾਂ ਦੇ ਇਸ ਸਾਗਰ ਵਿਚੋਂ ਤਰਨ ਲਈ) ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਮਾਲਿਕ ਪ੍ਰਭੂ ਨੂੰ ਹੀ ਯਾਦ ਕਰਦਾ ਹਾਂ, ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਪਾਸੋਂ ਮੈਂ ਇਹ ਮੰਗ ਨਹੀਂ ਮੰਗਦਾ। ਨਾਨਕ ਜੀ (ਆਪਣੇ) ਉਸ (ਮਾਲਿਕ) ਦਾ ਹੀ ਸੇਵਕ ਹੈ, ਉਸ ਮਾਲਿਕ ਤੋਂ ਹੀ ਖਿਨ ਖਿਨ ਸਦਕੇ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ॥੪॥ ਹੇ ਮੇਰੇ ਮਾਲਿਕ! ਮੈਂ ਤੇਰੇ ਨਾਮ ਤੋਂ ਖਿਨ ਖਿਨ ਕੁਰਬਾਨ ਜਾਂਦਾ ਹਾਂ ॥੧॥ ਰਹਾਉ॥੪॥੧॥अर्थ: राग धनासरी ,घर १ मे गुरू नानक देव जी की चार-बँदां वाली बाणी।अकाल पुरख एक है, जिस का नाम सच्चा है जो सिृसटी का रचनहार है, जो सब में मौजूद है, डर से रहित है, वैर रहित है, जिस का सरूप काल से परे है, (मतलब जिस का शरीर नाश रहित है), जो जूनों मे नही आता, जिस का प्रकाश अपने अाप से हुआ है और जो सतिगुरु की कृपा से मिलता है।(जगत दुखों का समुंद्र है, इन दुखों को देख कर) मेरी जिंद कांप जाती है (परमात्मा के बिना और कोई बचाने वाला नहीं दिखता) जिस के पास जा कर मैं अरजोई-अरदास करू। (इस लिए और आसरे छोड़ कर) मैं दुखों को नाश करने वाले प्रभू को ही सिमरता हूँ, वह सदा ही मेहर करने वाला है ॥१॥ (फिर वह) मेरा मालिक सदा ही बक्शीश तो करता रहता है (परन्तु वह मेरी रोज की बेनती सुन के बक्शीश करने में कभी परेशान नहीं होता) रोज ऐसे है जैसे पहली बार अपनी मेहर करना लगा है ॥१॥ रहाउ ॥ हे मेरी जिन्दे! हर रोज उस मालिक को याद करना चाहिए (दुखों से) आखिर वो ही बचाता है। हे मेरी जिन्दे! ध्यान से सुन (उस मालिक का सहारा लेने से ही दुखों से समुंद्र से) पार निकला जा सकता है ॥२॥ हे दयाल प्रभू! (मेहर कर, अपना नाम दे, जो कि) तेरे नाम से मैं (दुखों के इस समुँद्र को) पार कर सकूँ। मैं आपसे सदा सदके जाता हूँ ॥१॥ रहाउ ॥ सदा के लिए रहने वाला परमात्मा ही सब जगह हाजिर है, उस के बिना ओर कोई नही। जिस जीव पर वह मेहर की निगाह करता है, वह उस का सिमरन करता है ॥३॥ हे प्यारे (प्रभू!) तेरी याद के बिना मे परेशान हो जाता हूँ। मुझे कोई वह बड़ी दात दें, जिस करके मे तुम्हारे नाम मे जुड़ा रहा। हे प्यारे! तुम्हारे बिना ओर एेसा कोई नही है, जिस पास जा कर मैं यह अरझोई कर सका ॥१॥ रहाउ ॥ (दुखों के इस सागर से तरन लिए) मैं अपने मालक प्रभू को ही याद करता हूँ, किसी ओर से मैं यह माँग नही माँगता। नानक जी (अपने) उस (मालक) का ही सेवक है, उस मालक से ही खिन खिन सदके जाता है ॥४॥ हे मेरे मालक! मैं तेरे नाम से खिन खिन कुर्बान जाता हूँ ॥१॥ रहाउ ॥४॥१॥( Waheguru Ji Ka Khalsa, Waheguru Ji Ki Fathe )ਗੱਜ-ਵੱਜ ਕੇ ਫਤਹਿ ਬੁਲਾਓ ਜੀ !ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਜੀ ਕਾ ਖਾਲਸਾ !!ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਜੀ ਕੀ ਫਤਹਿ !!

AMRIT VELE DA HUKAMNAMA SRI DARBAR SAHIB SRI AMRITSAR, ANG-660, 19-SEPT.-2021 #Vnita ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੧ ਚਉਪਦੇ ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ਜੀਉ ਡਰਤੁ ਹੈ ਆਪਣਾ ਕੈ ਸਿਉ ਕਰੀ ਪੁਕਾਰ ॥ ਦੂਖ ਵਿਸਾਰਣੁ ਸੇਵਿਆ ਸਦਾ ਸਦਾ ਦਾਤਾਰੁ ॥੧॥ ਸਾਹਿਬੁ ਮੇਰਾ ਨੀਤ ਨਵਾ ਸਦਾ ਸਦਾ ਦਾਤਾਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ਅਨਦਿਨੁ ਸਾਹਿਬ ਸੇਵੀਐ ਅੰਤਿ ਛਡਾਏ ਸੋਇ ॥ ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਮੇਰੀ ਕਾਮਣੀ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰਾ ਹੋਇ ॥੨॥ ਦਇਆਲ ਤੇਰੈ ਨਾਮਿ ਤਰਾ ॥ ਸਦ ਕੁਰਬਾਣੈ ਜਾਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ਸਰਬੰ ਸਾਚਾ ਏਕੁ ਹੈ ਦੂਜਾ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ॥ ਤਾ ਕੀ ਸੇਵਾ ਸੋ ਕਰੇ ਜਾ ਕਉ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ॥੩॥ ਤੁਧੁ ਬਾਝੁ ਪਿਆਰੇ ਕੇਵ ਰਹਾ ॥ ਸਾ ਵਡਿਆਈ ਦੇਹਿ ਜਿਤੁ ਨਾਮਿ ਤੇਰੇ ਲਾਗਿ ਰਹਾਂ ॥ ਦੂਜਾ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ਜਿਸੁ ਆਗੈ ਪਿਆਰੇ ਜਾਇ ਕਹਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ਸੇਵੀ ਸਾਹਿਬ ਆਪਣਾ ਅਵਰੁ ਨ ਜਾਚੰਉ ਕੋਇ ॥ ਨਾਨਕੁ ਤਾ ਕਾ ਦਾਸੁ ਹੈ ਬਿੰਦ ਬਿੰਦ ਚੁਖ ਚੁਖ ਹੋਇ ॥੪॥ ਸਾਹਿਬ ਤੇਰੇ ਨਾਮ ਵਿਟਹੁ ਬਿੰਦ ਬਿੰਦ ਚੁਖ ਚੁਖ ਹੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥੪॥੧॥ धनासरी महला १ घरु १ चउपदे ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं(ग) गुर प्रसादि ॥ जीउ डरतु है आपणा कै सिउ करी पुकार ॥ दूख विसारणु सेविआ सदा सदा दातारु ॥१॥ साहिबु मेरा नीत नवा सदा सदा दातारु ॥१॥ रहाउ ॥ अनदिनु साहिबु सेवीऐ अंति छडाए सो...

🌹🌺ਨਵਾਂ ਦਿਨ , ਨਵੀਂ ਸਵੇਰ ਸਭ ਲਈ ਖੁਸ਼ੀਆਂ ਲੈ ਕੇ ਆਵੇ🌺🌹ਆਓ ਸਾਰੇ ਮਿਲ ਕੇ ਸਰਬੱਤ ਦੇ ਭਲੇ ਲਈ ਅਰਦਾਸ ਕਰੀਏ🌹ੴ ਨਾਨਕ ਨਾਮ ਚੜ੍ਹਦੀ ਕਲਾ , ਤੇਰੇ ਭਾਣੇ ਸਰਬੱਤ ਦਾ ਭਲਾ ੴ

🌹🌺ਨਵਾਂ ਦਿਨ , ਨਵੀਂ ਸਵੇਰ ਸਭ ਲਈ ਖੁਸ਼ੀਆਂ ਲੈ ਕੇ ਆਵੇ🌺 🌹ਆਓ ਸਾਰੇ ਮਿਲ ਕੇ ਸਰਬੱਤ ਦੇ ਭਲੇ ਲਈ ਅਰਦਾਸ ਕਰੀਏ🌹 ੴ ਨਾਨਕ ਨਾਮ ਚੜ੍ਹਦੀ ਕਲਾ , ਤੇਰੇ ਭਾਣੇ ਸਰਬੱਤ ਦਾ ਭਲਾ ੴ #Vnita

☝🌹🌹🙏🌸🌷ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਵੇਲਾਂ ਹੋਗਿਆ 🌹🌸🌷ਉਂਠੋ ਭਾਈ🌹🌷 ਲੱਗੋ ਬਾਬੇ ਨਾਨਕ ਦੀ ਬਾਣੀ ਦੇ ਲੜ ,🌸🙏🍁🌹ਕਰੋ ਆਪਣਾ ਜੀਵਨ ਸਫਲਾਂ 🌷🍁🌸🌹🌺🚩🚩,ਸੱਚੇ ਦਿਲੋਂ ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਜ਼ਰੂਰ ਲਿਖੋ🌹🌸🌷🍁ਰੱਬ ਦੀ ਦਰਗਾਹ ਚ ਤੁਹਾਡੀ ਹਾਜ਼ਰੀ ਕਬੂਲ ਹੋਵੇ💐🌾🍃🍁🌷🌸🌹🌹🌹🌹🌹🌹

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ਮਾਤਾ ਭਾਗ ਭਰੀ ਜੀ ਸ੍ਰੀ ਨਗਰ ,By Smajsevi Vnita Kasnia Punjab ਮਾਈ ਭਾਗ ਭਰੀ ਸ੍ਰੀ ਨਗਰ ਦੀ ਰਹਿਣ ਵਾਲੀ । ਇਸ ਦਾ ਲੜਕਾ ਭਾਈ ਸੇਵਾ ਦਾਸ ਕਟੜ ਬ੍ਰਾਹਮਣ ਗੁਰੂ ਦਾ ਸਿੱਖ ਬਣ ਗਿਆ । ਮਾਈ ਭਾਗ ਭਰੀ ਬਹੁਤ ਬਿਰਧ ਸੀ ਅੱਖਾਂ ਦੀ ਨਿਗਾਹ ਚਲੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਪਾਸੋਂ ਸੁਣਿਆ ਕਿ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਨੂੰ ਜਿਹੜਾ ਸੱਚੇ ਦਿਲੋਂ ਯਾਦ ਕਰੇ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਤੇ ਪ੍ਰੇਮ ਤੇ ਸ਼ਰਧਾ ਰੱਖੇ ਤਾਂ ਉਹ ਆਪ ਕੇ ਘਰ ਦਰਸ਼ਨ ਦੇਂਦੇ ਹਨ । ਮਾਈ ਜੀ ਇਹ ਗੱਲ ਸੁਣ ਇਕ ਗਰਮ ਚੋਲਾ ਤਿਆਰ ਕਰ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਯਾਦ ਕਰਨ ਲੱਗੀ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਦਿਲ ਦੇ ਪ੍ਰੇਮ ਦੀਆਂ ਤਾਰਾਂ ਖੜਕੀਆਂ ਮਾਈ ਤੋਂ ਚੋਲਾ ਆਣ ਮੰਗਿਆ ਤੇ ਨਾਲ ਹੀ ਉਸ ਕਈਆਂ ਵਰਿਆਂ ਦੀ ਜਾ ਚੁੱਕੀ ਨਜ਼ਰ ਵਾਪਸ ਪਰਤ ਆਈ । ਮਾਈ ਦੇ ਪ੍ਰੇਮ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਸੱਦ ਲਿਆ । ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਤਿਬਤ ਪ੍ਰਚਾਰ ਲਈ ਗਏ ਤਾਂ ਆਪ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੀ ਵਾਦੀ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ । ਹੁਣ ਇਹ ਦੂਜੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਸਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇਸ ਪਾਸੇ ਪਰਚਾਰ ਯਾਤਰਾ ਆਰੰਭ ਕੀਤੀ । ਇਸ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਵੀ ਕਸ਼ਮੀਰ ਤੱਕ ਮੰਜੀਆਂ ਸਥਾਪਤ ਕਰਕੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਵੇਲੇ ਦੋ ਕਟੜ ਬ੍ਰਾਹਮਣ ਘਰੋਂ ਬਨਾਰਸ ਵਿਦਿਆ ਹਾਸਲ ਕਰਨ ਲਈ ਤੁਰੇ ਤਾਂ ਸ੍ਰੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਆ ਦਰਸ਼ਨ ਕੀਤੇ । ਏਥੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸੁਖਮਨੀ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਪਾਠ ਸੁਣਿਆ ਤਾਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਨਿਸ਼ਾ ਹੋ ਗਈ । ਏਨੇ ਪ੍ਰਭਾਵਤ ਹੋਏ ਕਿ ਬਨਾਰਸ ਜਾਣ ਦਾ ਵਿਚਾਰ ਛੱਡ ਸਿੱਖੀ ਧਾਰਨ ਕਰ ਲਈ । ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇਕ ਕਟੂ ਸ਼ਾਹ ਨਾਮੀ ਮੁਸਲਮਾਨ ਤੋਂ ਸਿੱਖ ਬਣਿਆ ਸੀ । ਤਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਦੁਆਰਾ ਕਸ਼ਮੀਰ ਵਿਚ ਸਿੱਖੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਫੁੱਲਤ ਰਖਿਆ ਇਥੇ ਇਕ ਮਾਈ ਭਾਗ ਭਰੀ ਭਾਈ ਸੇਵਾ ਦਾਸ ਦੀ ਮਾਤਾ ਦੇ ਪਿਆਰ ਸਦਕਾ ਗੁਰੂ ਜੀ ਕਸ਼ਮੀਰ ਵਲ ਖਿਚੇ ਗਏ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਲਾਹੌਰ ਤੋਂ ਸੰਗਤਾਂ ਨੂੰ ਤਾਰਦੇ ਸਿਆਲਕੋਟ ਪੁੱਜੇ । ਇਹ ਪੁਰਾਣਾ ਵਿਦਵਾਨਾਂ ਦਾ ਸ਼ਹਿਰ ਕਰਕੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੀ । ਇਥੇ ਵਿਦਵਾਨ , ਔਲੀਏ , ਫ਼ਕੀਰ ਤੇ ਸੰਤ ਉਚੇਚਾ ਮੌਲਵੀ ਅਬਦੁੱਲ ਹਕੀਮ ਆਦਿ ਆਪ ਨੂੰ ਮਿਲੇ । ਬੜੀਆਂ ਵਿਚਾਰ ਗੋਸ਼ਟੀਆਂ ਹੋਈਆਂ । ਚਾਪਰਨਲਾ ’ ਪਿੰਡ ਦੇ ਲਾਗੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਇਕ ਬਾਹਮਣ ਅਚਾਨਕ ਮਿਲ ਪਿਆ ਤਾਂ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਪੁਛਿਆਂ ਕਿ “ ਏਥੇ ਕਿਥੇ ਪੀਣ ਤੇ ਇਸ਼ਨਾਨ ਕਰਨ ਲਈ ਪਾਣੀ ਮਿਲੇਗਾ ? " ਬ੍ਰਾਹਮਣ ਬੜੀ ਬੇਰੁੱਖੀ ਤੇ ਹੈਂਕੜ ਵਿਚ ਕਿਹਾ , “ ਏਥੋਂ ਪੱਥਰਾਂ ਚੋਂ ਕਿਥੋਂ ਪਾਣੀ ਲਭਦੇ ਹੋ ? ਗੁਰੂ ਜੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਪੱਥਰਾਂ ਵਿੱਚ ਨੇਜਾ ਖੋਭਿਆ ਤਾਂ ਪਾਣੀ ਦਾ ਫਵਾਰਾ ਚਲ ਪਿਆ । ਬਾਹਮਣ ਫਵਾਰਾ ਫੁਟਿਆ ਵੇਖ ਸ਼ਰਮਿੰਦਾ ਜਿਹਾ ਹੋ ਗਿਆ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਪਾਸੋਂ ਮਾਫੀ ਮੰਗੀ ਤੇ ਕਿਹਾ ਕਿ “ ਮਹਾਰਾਜ ਤੁਹਾਡੀ ਮਹਾਨਤਾ ਨੂੰ ਮੈਂ ਪਛਾਣ ਨਹੀਂ ਸਕਿਆ । ਮੈਨੂੰ ਖਿਮਾ ਬਖਸ਼ੋ । ” ਇਸ ਫਵਾਰੇ ਤੋਂ ਇਕ ਬੜਾ ਸੁੰਦਰ ਸਰੋਵਰ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ ਹੈ । ਜਿਸ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਸਰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।ਮਾਈ ਭਾਗ ਭਰੀ ਭਾਈ ਸੇਵਾ ਦਾਸ ਦੀ ਬਿਰਧ ਮਾਤਾ ਅੱਖਾਂ ਤੋਂ ਅੰਨੀ ਹੋ ਚੁੱਕੀ ਸੀ । ਜਦੋਂ ਘਰ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਕਰਦਿਆਂ ਨੂੰ ਸੁਣਦੀ ਤਾਂ ਉਸ ਦਾ ਜੀ ਵੀ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦਰਸ਼ਨ ਕਰਨ ਨੂੰ ਦਿਲ ਕਰਦਾ ਪਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਨਾ ਕੋਈ ਸਿੱਧਾ ਰਾਹ ਨਾ ਕੋਈ ਗੱਡੀ ਮੋਟਰ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ਤਗੜੇ ਪੁਰਸ਼ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨ ਮੇਲੇ ਕਰ ਆਇਆ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਇਕ ਦਿਨ ਭਾਈ ਮਾਧੋ ਜੀ ਵੀ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਘਰ ਆਏ ਹੋਏ ਸਨ । ਗੱਲਾਂ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ ਕਿ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਪਿਆਰ ਤੇ ਸ਼ਰਧਾ ਦੀ ਬੜੀ ਕਦਰ ਕਰਦੇ ਜਿਹੜਾ ਸਿੱਖ ਜਾਂ ਕੋਈ ਸੱਚੇ ਹਿਰਦੇ ਨਾਲ ਯਾਦ ਕਰਦੈ ਉਸ ਨੂੰ ਆ ਦਰਸ਼ਨ ਦੇਂਦੇ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਆਪਸੀ ਗੱਲਾਂ ਸੁਣ ਮਾਈ ਭਾਗ ਨੇ ਵੀ ਸੋਚਿਆ ਮੈਂ ਵੀ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਸੱਚੇ ਦਿਲ ਨਾਲ ਯਾਦ ਕਰਾਂ ਤਾਂ ਉਹ ਜਰੂਰ ਆਉਣਗੇ । ਇਹ ਸੋਚ ਉਸ ਨੇ ਚੰਗੀ ਉਨ ਮੰਗਾਈ ਧੋ ਕੇ ਸਾਫ ਕਰ ਬਰੀਕ ਕੱਤੀ । ਫਿਰ ਦੋਹਰੀ ਕੀਤੀ ਤੇ ਕੱਤੀ । ਇਸ ਤਰਾਂ ਕਰਦਿਆਂ ਹਰ ਸਮੇਂ ਸੱਚੇ ਪਾਤਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਯਾਦ ਕਰਦੀ ।ਹੌਲੀ - ਹੌਲੀ ਸਲਾਈਆਂ ਨਾਲ ਉਣਨਾਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ । ਰੋਜ਼ ਉਣਦਿਆਂ ਵੀ ਗੁਰੂ ਜੀ ਵਲ ਧਿਆਨ ਕਰਕੇ ਸੋਚਾਂ ਵਿੱਚ ਡੁੱਬ ਕਹਿਣਾ । “ ਮੈਂ ਅੰਨੀ ਦੇ ਭਾਗ ਕਿਥੋਂ ਕਿ ਮੈਂ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨ ਕਰਾਂ । ਜੇ ਉਹ ਆ ਵੀ ਗਏ ਮੈਥੋਂ ਬਦ ਕਿਸਮਤ ਪਾਸੋਂ ਕਿਹੜਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਚਿਹਰਾ ਵੇਖਿਆ ਜਾਣਾ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਰੋਜ਼ ਕਰਦਿਆਂ ਉਸ ਇੱਕ ਸੁੰਦਰ ਗਰਮ ਚੋਲਾ ਸੀਤਾ - ਧੋਤਾ ਤੇ ਜੋੜ ਦੇ ਸੰਦੂਕ ਵਿਚ ਰੱਖ ਲਿਆ ਕਿ ਪਤਾ ਨਹੀਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਕਦੋਂ ਆਉਣਾ ਹੈ । ਇਕ ਦਿਨ ਭਾਈ ਸੇਵਾ ਦਾਸ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਗੁਰੂ ਜੀ ਪੰਜਾਬ ਤੋਂ ਕਸ਼ਮੀਰ ਵੱਲ ਚੱਲ ਪਏ ਹਨ । ਮਾਤਾ ਖੁਸ਼ੀ ਵਿਚ ਉਛਲੀ ਚੋਲਾ ਸੰਦੂਕ ਵਿਚ ਕੱਢ ਪੁੱਤਰ ਨੂੰ ਦਿਖਾਉਂਦੀ ਹੈ । ਉਹ ਵੇਖ ਬਹੁਤ ਖੁਸ਼ ਹੋਇਆ ।ਹੁਣ ਮਾਤਾ ਨੇ ਸਵੇਰੇ ਹੀ ਚੋਲਾ ਸੰਦੂਕ ਵਿੱਚੋਂ ਕੱਢ ਲਾਗੇ ਰੱਖ ਬੈਠ ਜਾਣਾ । ਰਾਤ ਫਿਰ ਸਾਂਭ ਕੇ ਸੰਦੂਕ ਵਿੱਚ ਰਖ ਦੇਣਾ । ਕਈ ਦਿਨ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਲੰਘ ਗਏ । ਇਕ ਦਿਨ ਚੋਲਾ ਕੱਢ ਕੇ ਹੰਝੂਆਂ ਦੀ ਝੜੀ ਲਾ ਦਿੱਤੀ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਉਡੀਕ ਵਿਚ ਭਾਵੁਕ ਹੋ ਕੇ ਬੋਲਣ ਲੱਗੀ , “ ਮੈਂ ਪਤਾ ਨਹੀਂ ਕਿਹੋ ਜਿਹੀ ਪਾਪਣ ਹਾਂ ਜਿਹੜੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਅਜੇ ਨਹੀਂ ਬਹੁੜੇ ਖਬਰੇ ਮੇਰੇ ਸ਼ਰਧਾ ਤੇ ਪ੍ਰੇਮ ਵਿਚ ਕੋਈ ਘਾਟ ਹੈ ਜਿਹੜੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਮੈਨੂੰ ਅੰਨੀ ਨੂੰ ਦੇਖਣਾ ਪਸੰਦ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ ਜੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਆ ਵੀ ਗਏ , ਮੈਂ ਅੰਨੀ ਕਿਵੇਂ ਦਰਸ਼ਨ ਕਰਾਂਗੀ । “ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਰਦੀ ਦੀ ਅੱਖ ਲਗ ਗਈ । ਮਾਤਾ ਦੇ ਘਰ ਸ਼ੋਰ ਮੱਚ ਗਿਆ | ਆਵਾਜ਼ਾਂ ਆ ਰਹੀਆਂ , ਸੱਚੇ ਪਾਤਸ਼ਾਹ ਆ ਗਏ । ਮਾਤਾ ਉਬੜ ਵਾਹੇ ਉਠੀ ਲਾਗੋ ਟਟੋਲ ਕੇ ਚੋਲਾ ਫੜਦੀ ਹੈ।ਉਧਰ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਸੁੰਦਰ ਦਿਲ ਮੋਹਣੀ ਆਵਾਜ਼ ਆਈ ਹੈ “ ਮਾਤਾ ਤੇਰਾ ਚੋਲਾ ਲੈਣ ਆਇਆ ਹਾਂ ਮਾਤਾ ਦੇ ਕੰਨੀਂ ਪਈ ਕਪਾਟ ਖੁਲ ਗਏ । ਦਿਸਣ ਲਗ ਪਿਆ । ਚੋਲਾ ਭੁੱਲ ਹੀ ਗਿਆ ਗੁਰੂ ਜੀ ਚਰਨ ਪਕੜ ਸਿਰ ਚਰਨ ਤੇ ਸੁੱਟ ਦਿੱਤਾ ਗੁਰੂ ਜੀ ਮਾਈ ਨੂੰ ਗਲ ਨਾਲ ਲਾਇਆ ਤੇ ਮੁਖਾਰਬਿੰਦ ਤੋਂ ਫਿਰ ਕਿਹਾ “ ਮਾਈ ਚੋਲਾ ” ਤਾਂ ਮਾਤਾ ਨੇ ਮੰਜੇ ਤੋਂ ਚੋਲਾ ਲਿਆ ਕੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਉਸੇ ਵੇਲੇ ਇਸ ਨੂੰ ਗਲ ਪਾਉਣ ਦੀ ਬੇਨਤੀ ਕੀਤੀ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਹੋਰਾਂ ਮਾਈ ਦਾ ਪਿਆਰ ਤੇ ਸ਼ਰਧਾ ਨਾਲ ਭਿਜਿਆ ਚੋਲਾ ਗਲ ਪਾਇਆ ਬੜੀ ਖੁਸ਼ੀ ਨਾਲ ਹੱਸੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਬਚਨ ਕੀਤਾ “ ਧੰਨ ਮਾਤਾ ਭਾਗ ਭਰੀ ਧੰਨ ਤੇਰਾ ਪਿਆਰ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨ ਕਰਨ ਦੀ ਦੇਰ ਸੀ ਕਿ ਮਾਤਾ ਜੀ ਸੱਚਖੰਡ ਜਾ ਬਰਾਜੀ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਮਾਤਾ ਦਾ ਬਿਬਾਨ ਤਿਆਰ ਕਰ । ਆਪ ਚਿਖਾ ਤਿਆਰ ਕਰਵਾਈ ਆਪ ਅੰਤਮ ਅਰਦਾਸ ਕਰ ਕੇ ਦਾਗ ਦਿੱਤਾ । ਇਹੋ ਜਿਹੀ ਭਾਗਾਂ ਭਰੀ ਕੋਈ ਵਿਰਲੀ ਹੀ ਔਰਤ ਹੋਵੇਗੀ ਜਿਸ ਨੂੰ ਅੰਤਮ ਵੇਲੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਆਣ ਦਰਸ਼ਨ ਦੇਣ ਤੇ ਉਸ ਦੀ ਅੰਤਮ ਕਿਰਿਆ ਵੀ ਆਪ ਹੀ ਕੀਤੀ ਹੋਵੇਗੀ । ਜੋ ਇਹ ਭਾਗ ਭਰੀ ਹੀ ਭਾਗਾਂ ਵਾਲੀ ਸੀ ।ਜਿਸ ਦੇ ਸੱਚ ਸਿਦਕ ਪਿਆਰ ਤੇ ਸ਼ਰਧਾ ਦੇ ਕੀਲੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਸਿਧੇ ਵਾਟਾਂ ਮਾਰਦੇ ਪੁੱਜੇ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਸਤਾਰਵੀ ਤੇ ਆਪ ਭਾਈ ਸੇਵਾ ਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਸੀਸ ਤੇ ਦਸਤਾਰ ਬੰਨੀ । ਸੰਗਤਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨਾਂ ਲਈ ਵਹੀਰਾਂ ਘੱਤੀਆਂ ਜਿੰਨੀ ਭੇਟਾ ਤੇ ਸੇਵਾ ਹਾਜ਼ਰ ਹੋਈ , ਉਸ ਦਾ ਇਥੇ ਮਾਈ ਦੀ ਯਾਦ ਵਿਚ ਇਕ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਤੇ ਲੰਗਰ ਚਾਲੂ ਕਰਨ ਲਈ ਕਿਹਾ । ਇਹ ਲੰਗਰ ਹੁਣ ਤੱਕ ਉਵੇਂ ਕਾਇਮ ਹੈ ਕਸ਼ਮੀਰੀ ਸਿੱਖਾਂ ਇਥੇ ਮਾਈ ਭਾਗ ਭਰੀ ਤੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਏਥੇ ਪਧਾਰਨ ਦੀ ਯਾਦ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਸੁੰਦਰ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ਹੋਇਆ ਹੈ । ਮਹਿਮਾ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਵਿਚ ਵੀ ਲਿਖਿਆ ਹੈ : ਪੁਨ ਸਭ ਬਸਤਰ ਸਤਿਗੁਰ ਪਹਿਰਾਇ ॥ ਜੋ ਪ੍ਰੀਤ ਨਾਲ ਨਿਜ ਹਾਥ ਬਣਾਏ ॥ ਸੂਰਜ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦੇ ਪੰਨਾ ੧੭੨੦ ਤੇ ਇਉਂ ਲਿਖਿਆ ਹੈ । ਧੰਨ ਜਨਮ ਬਿਰਧ ਕੋ ਕਹੈ ॥ ਜਿਸ ਕੀ ਮਮਤਾ ਜੋਗੀ ਹੈ ॥ ਸਤਿਗੁਰ ਕੀਆ ਇਸ ਕੋ ਪਾਇ ਸਸਕਾਰਨਿ ਕੋ ਕੀਨਿ ਉਪਾਇ ॥੩੦ ॥ ਸੂਰਜ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਵਿਚ ਫਿਰ ਲਿਖਿਆ ਹੈ ਇਸ ਘਰ ਵਿਚ ਧਰਮ ਸਾਲ ਬਣ ਲੰਗਰ ਲਗ ਗਏ । ਦੇਗ ਚਲਾਵਿਨ ਲਾਗਿਓ ਤਹਾਂ । ਧਰਮਸਾਲ ਰਚਿ ਸੰਗਤ ਮਹਾਂ । ਇਹ ਅਸਥਾਨ ਕਾਠੀ ਦਰਵਾਜੇ ਅਸਥਿਤ ਹੈ । ਅਪਰ ਜਿਤਿਕ ਧੰਨ ਸੰਚੈ ਹੋਹਿ || ਸਤਿਗੁਰੂ ਢਿਗ ਪਹੁੰਚਾਵੈ ਸੋਹਿ ॥

ਮਾਤਾ ਭਾਗ ਭਰੀ ਜੀ ਸ੍ਰੀ ਨਗਰ , ਮਾਈ ਭਾਗ ਭਰੀ ਸ੍ਰੀ ਨਗਰ ਦੀ ਰਹਿਣ ਵਾਲੀ । ਇਸ ਦਾ ਲੜਕਾ ਭਾਈ ਸੇਵਾ ਦਾਸ ਕਟੜ ਬ੍ਰਾਹਮਣ ਗੁਰੂ ਦਾ ਸਿੱਖ ਬਣ ਗਿਆ । ਮਾਈ ਭਾਗ ਭਰੀ ਬਹੁਤ ਬਿਰਧ ਸੀ ਅੱਖਾਂ ਦੀ ਨਿਗਾਹ ਚਲੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਪਾਸੋਂ ਸੁਣਿਆ ਕਿ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਨੂੰ ਜਿਹੜਾ ਸੱਚੇ ਦਿਲੋਂ ਯਾਦ ਕਰੇ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਤੇ ਪ੍ਰੇਮ ਤੇ ਸ਼ਰਧਾ ਰੱਖੇ ਤਾਂ ਉਹ ਆਪ ਕੇ ਘਰ ਦਰਸ਼ਨ ਦੇਂਦੇ ਹਨ । ਮਾਈ ਜੀ ਇਹ ਗੱਲ ਸੁਣ ਇਕ ਗਰਮ ਚੋਲਾ ਤਿਆਰ ਕਰ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਯਾਦ ਕਰਨ ਲੱਗੀ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਦਿਲ ਦੇ ਪ੍ਰੇਮ ਦੀਆਂ ਤਾਰਾਂ ਖੜਕੀਆਂ ਮਾਈ ਤੋਂ ਚੋਲਾ ਆਣ ਮੰਗਿਆ ਤੇ ਨਾਲ ਹੀ ਉਸ ਕਈਆਂ ਵਰਿਆਂ ਦੀ ਜਾ ਚੁੱਕੀ ਨਜ਼ਰ ਵਾਪਸ ਪਰਤ ਆਈ । ਮਾਈ ਦੇ ਪ੍ਰੇਮ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਸੱਦ ਲਿਆ ।  ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਤਿਬਤ ਪ੍ਰਚਾਰ ਲਈ ਗਏ ਤਾਂ ਆਪ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੀ ਵਾਦੀ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ । ਹੁਣ ਇਹ ਦੂਜੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਸਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇਸ ਪਾਸੇ ਪਰਚਾਰ ਯਾਤਰਾ ਆਰੰਭ ਕੀਤੀ । ਇਸ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਵੀ ਕਸ਼ਮੀਰ ਤੱਕ ਮੰਜੀਆਂ ਸਥਾਪਤ ਕਰਕੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ ਸੀ । ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਵੇਲੇ ਦੋ ਕਟੜ ਬ੍ਰਾਹਮਣ ਘਰੋਂ ਬਨਾਰਸ ਵਿਦਿਆ ਹਾਸਲ ਕਰਨ ਲਈ ਤੁਰੇ ਤਾਂ ਸ੍ਰੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਆ ਦਰਸ਼ਨ ਕੀਤੇ । ਏਥੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸੁਖਮਨੀ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਪਾਠ ਸੁਣਿਆ ਤਾਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਨਿਸ਼ਾ ਹੋ ਗਈ । ਏਨੇ ਪ੍ਰਭਾਵਤ ਹੋਏ ਕਿ ਬ...